सालों तक उस "डूग-डूग" आवाज़ का पीछा, महीनों तक निहारते रहने और कई सप्ताह के इंतज़ार के बाद हमने भी एक रॉयल एनफील्ड खरीद ही ली। और पहले ही दिन जब हम उनको शो रूम से लेकर निकले, दिल में बहुत कुछ हुआ (हाँ बहुत-कुछ, क्यूंकि कुछ-कुछ तो बस खान साब को होता है) । दिल हिचकोले खा रहा था और दिमाग दिल को समझा रहा था - "हाँ पगले, इसी को प्यार कहते हैं" । हमारे लिए ये शब्द नया नहीं है, क्यूंकि हमारे "फोसले"पन के किस्से चर्चा में रहते हैं। लेकिन उस दिन हमने जाना की सच्चा प्यार क्या होता है - सुना था जब प्यार होता है तो हवाएं चलने लगती है ज़िन्दगी स्लो मोशन में चलने लगती है...हमारे साथ यही हुआ था।
अब चूँकि आर्टिकल ३७७ को हमारे संविधान ने स्वीकृति दे दी है, इसलिए सारे भ्रम को दरकिनार कर हमने उनका नाम रखा "बुलबुल"। नामांकरण होना नहीं था की हमारी चाल में उछाल और आँखों में चमक आ गयी। और जब रस्ते पर लोग पलट पलट कर हमारी ही सवारी देखते थे - इस बात का तो हमें इल्म ही नहीं था की वो हमारी डील को देख हँसते थे और शिष्टता का प्रसार करते हुए बस आँखों से मुस्कुरा देते थे - तो हमारी तो जैसे बांछें खिल जाती थी।
पहले ही सप्ताह में एक ट्रैफिक सिग्नल पर हमसे एक महानुभाव ने पूछ लिया - "कितना पड़ा?" । हमने सीना चौड़ा करते हुए अपनी तर्जनी को उठा कर इशारा किया की १ लग गया। उनका चौंकना लाजमी था लेकिन फिर उनके अगले सवाल - "तेल कितना पीता है?" से हमारे तन बदन में आग लग गयी। मन तो हुआ की उनसे पूछें की साहब आप अपनी बीवी से ये पूछते हैं की वो कितना खाती है । लेकिन उनकी किस्मत अच्छी थी की सिग्नल हो गया और उनके दांपत्य जीवन की खिल्ली नहीं उड़ी।
फिर एक दिन हमारे एक दोस्त ने हमें दावत पर आमंत्रित किया (दोस्त क्या सुदूरवर्ती रिश्तेदार ही थे) । हम हमारी बुलबुल के साथ उनके यहाँ धमक गए। अब उनसे ये दृश्य शायद हज़म नहीं हुआ और उन्होंने वो सवाल पूछ लिया जिसको पूछने से दुनिया शर्माती थी - "संभाल लेते हो?"। झेंपते हुए हमने कहा हाँ हाँ बिलकुल। उनका अगला सवाल - "जिम ज्वाइन किया है क्या?"। हमारे तो जैसे सब्र का बाँध ही टूट जाता उस वक्त की महाशय हम इसे धक्का देकर नहीं चलाते, ये भी अन्य दो-पहियों की तरह इंजीन से ही चलता है। लेकिन फिर वही शिष्टता की बात आ गयी और बस किसी तरह बात को हमने रफा दफा कर दिया।
अब आये दिन ऐसी छोटी मोटी घटनाएं होती रहती हैं - जब कभी हमारा सीना चौड़ा हो जाता है और कभी हम शर्मसार होकर किसी तरह दिल को समझा लेते हैं। लेकिन प्यार मोहब्बत की जो पारस्परिक प्रथा है वो हमें अब जाकर समझ आयी है । इसमें कोई दो राय नहीं है की हमारी बुलबुल हम पर उतना ही जान छिड़कती है जितना हम उनपर!!!
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He he he.. finally.. A post on BUL BUL :)
ReplyDeleteWoh achha tha .. " kya aap apni biwi se poochte hain ki won kitna khati hai "
And " Sambhal lete ho " ..
Bolna tha na " Ab apni hai. Moti patli bhari halki .. "
And i guess for u first sight love is " Bulbul :P"
Well wriiten !!!
when are you goin to write in english-hindi so that I can fast read it .....instead of using google translator and getting confused!...common dude....not cool!
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