Friday, October 09, 2009

क्या बदला??

फ़िर से कहाँ बह चले ----
बहाव में विचार भी जैसे घिस गए ।
उन पुराने पन्नों में ---
वो मोड़ फ़िर दिखे,
जहाँ कभी हम टूट गए,
जहाँ मूल्य भी सब छूट गए ।
उस चमकदार रौशनी में
शायद हम ही भटक गए।
उन मोड़ पर क्या बदला ?
शायद हम या
शायद हालात बदल गए।

2 comments:

  1. Well Written ..
    I liked the line" Shaayd hum ya shayad halat badal gaye "

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दिन

दिन   बीत रहे हैं गुज़र रहे हैं फिसल रहे हैं खिसक रहे हैं लुढ़क रहे हैं नहीं रुक रहे हैं। हम गिन रहे हैं जोड़ रहे हैं जोह रहे हैं खो रहे हैं...