पाखंडों की दुनिया में हम
द्वेश्दर्शी बन गए,
हाथ में लेकर परचम
बडबडाते चल दिए।
ना कूदेंगे मैदान में हम
श्रेष्ठता सिर मौर लिए,
वाक्-योधा बन के हम
दूर से ही हंस लिए।
आपके ही मौन से
ये बिलखता कौन है?
आँखें ऊपर को टिका
वर्तमान कुचलते चल दिए।
चलना उस पथ हैं नही
दिशाओं के अर्थ गुल किए,
टिप्पणियों की वर्षा से फ़क़त
मुद्दा ही हल्का कर गए।
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No Name to this poem ?
ReplyDeletei liked the words .But still name should be there :)
Could not think of any!!!
ReplyDeleteNeed some suggestion here.
This comment has been removed by the author.
ReplyDeletemast hai...
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