
बहुत संजो कर कुछ साहस रखा था
थोडी हलकी-फुल्की आशा भी
आज कोई उसे छल रहा है
आशा तो पवन की संगिनी लगती है
उसी के रुख पर थिरकती है
और साहस सहमा सा एक बचपन
झिड़क के डर से कोने में दुबका हुआ
युगांतर का अनुभव है ये--
या युगांत का...
कहीं छंदों का कहीं संगों का कहीं फूल बहार के खेलों का चट्टानों, झील समंदर का सुन्दर रंगीन उपवनों का ख़ुशबू बिखेरती सुगंध का, कभी रसीले पकवान...
अच्छी कवितायें हैं। लिखते चलिये।
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