
बहुत संजो कर कुछ साहस रखा था
थोडी हलकी-फुल्की आशा भी
आज कोई उसे छल रहा है
आशा तो पवन की संगिनी लगती है
उसी के रुख पर थिरकती है
और साहस सहमा सा एक बचपन
झिड़क के डर से कोने में दुबका हुआ
युगांतर का अनुभव है ये--
या युगांत का...
दूर दूर तक खेत दिखते हैं, ज़्यादा फ़रक भी नहीं है, कम से कम खेतों में। कभी हल्के रंग दिखते हैं और कहीं गहरे धानी। फ़सल गेहूँ सी लगती है पर क...
अच्छी कवितायें हैं। लिखते चलिये।
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