Sunday, June 16, 2024

थी जगह वही

थी जगह वही
पर वीरानी लगती है।
यादों के कोरों से निकालने पर
पहचानी सी लगती है।

वही रास्ता, वही चौक
पर लोग बदले से लगते हैं
इन मोड़ों पर, दुकानों पर लोग
अब अपने नहीं लगते हैं।


बदलाव ही जीवन है

पर हम कैसे बदल जाएँ 

जहां जुड़-तुड़कर बनें हम,

उस माहौल को कैसे भूल जाएँ!


जिन से थी हमारी पहचान

उन्हें खोते जा रहें हैं,

दिशाहीन धड़, कमज़ोर जड़

न इधर के न उधर के

जाने हम क्या होते जा रहे हैं!

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