दिमाग़ के
सारे पोर बंद हैं
न स्वाद है
न सुगंध है
ये जुकाम बड़ी बेरहम है।
ऑंखों में खुमारी
टूटते बदन के
हर हिस्से में ख़म है
ये जुकाम बड़ी बेरहम है।
उठती सॉंसों में
विरक्ति,
उतरती में बलगम है
ये जुकाम बड़ी बेरहम है।
सारे पोर बंद हैं
न स्वाद है
न सुगंध है
ये जुकाम बड़ी बेरहम है।
ऑंखों में खुमारी
टूटते बदन के
हर हिस्से में ख़म है
ये जुकाम बड़ी बेरहम है।
उठती सॉंसों में
विरक्ति,
उतरती में बलगम है
ये जुकाम बड़ी बेरहम है।
दिन बीत रहे हैं गुज़र रहे हैं फिसल रहे हैं खिसक रहे हैं लुढ़क रहे हैं नहीं रुक रहे हैं। हम गिन रहे हैं जोड़ रहे हैं जोह रहे हैं खो रहे हैं...