Wednesday, July 05, 2023

अब वो हाथ छुड़ाना सीख रही है

चीख चिल्लाकर

कभी झुंझलाकर,

हाथ खींच कर 

कभी झटक कर,

ख़ुद अपने 

रास्तों को चुन रही है,

अब वो हाथ छुड़ाना

सीख रही है।


समझ के अगले स्तर पर

अपने आप को आँक रही है,

नई नज़र से

बेफ़िकर सी

हर कदम चुनकर

स्वयं को समझ कर रही है,

अब वो हाथ छुड़ाना

सीख रही है।


आत्मविश्वास की

पहली सीढ़ी चढ़कर,

अपनी मंज़िल,

अपना सफ़र 

आप ढूँढ रही है,

अब वो हाथ छुड़ाना

सीख रही है।

No comments:

Post a Comment

दिन

दिन   बीत रहे हैं गुज़र रहे हैं फिसल रहे हैं खिसक रहे हैं लुढ़क रहे हैं नहीं रुक रहे हैं। हम गिन रहे हैं जोड़ रहे हैं जोह रहे हैं खो रहे हैं...