चीख चिल्लाकर
कभी झुंझलाकर,
हाथ खींच कर
कभी झटक कर,
ख़ुद अपने
रास्तों को चुन रही है,
अब वो हाथ छुड़ाना
सीख रही है।
समझ के अगले स्तर पर
अपने आप को आँक रही है,
नई नज़र से
बेफ़िकर सी
हर कदम चुनकर
स्वयं को समझ कर रही है,
अब वो हाथ छुड़ाना
सीख रही है।
आत्मविश्वास की
पहली सीढ़ी चढ़कर,
अपनी मंज़िल,
अपना सफ़र
आप ढूँढ रही है,
अब वो हाथ छुड़ाना
सीख रही है।
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