Saturday, January 07, 2023

अब वो बातें बनाना सीख रही है

दो में दो जोड़ पाँच कर रही है,
मीठी चाशनी में घोल
जबेली सी मोड़ दे रही है;
आँखों को गोल-गोल कर
हाथों को इधर-उधर फेंक,
शब्दों में भाव भर रही है,
अब वो बातें बनाना सीख रही है।

क़िस्से गज दो गज से,
कभी हल्केकभी भरकम

तौलकरकभी नापकर

आड़े-तिरछे कभी बुनकर,

अपने भुने मसालों को 

जैसे चखकर;

रसीले पकवान परोस रही है,

अब वो बातें बनाना सीख रही है 

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