दो में दो जोड़ पाँच कर रही है,
मीठी चाशनी में घोल
जबेली सी मोड़ दे रही है;
आँखों को गोल-गोल कर
हाथों को इधर-उधर फेंक,
शब्दों में भाव भर रही है,
अब वो बातें बनाना सीख रही है।
मीठी चाशनी में घोल
जबेली सी मोड़ दे रही है;
आँखों को गोल-गोल कर
हाथों को इधर-उधर फेंक,
शब्दों में भाव भर रही है,
अब वो बातें बनाना सीख रही है।
क़िस्से गज दो गज से,
कभी हल्के, कभी भरकम
कभी हल्के, कभी भरकम
तौलकर, कभी नापकर
आड़े-तिरछे कभी बुनकर,
अपने भुने मसालों को
जैसे चखकर;
रसीले पकवान परोस रही है,
अब वो बातें बनाना सीख रही है ।
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