फिर हाथ सलामी में उठे
फिर कई ऑंखें रोईं
फिर सीने ठोके गए
पुष्पांजलि की आड़ में कितने छुपे
हुआ खूब हल्ला
बहिष्कार, बहिष्कार!
चार दिन बाकियों ने मनाया शोक
फिर इतिहास ने चादर काढ़ी,
मौत आँकड़े बन गये
हादसा बन गई तारीख़।
भभकती कभी कभी ये चीत्कार
पलटवार, पलटवार!
जिनसे उनकी दुनिया छिन गई
फेर कर देखो उनसे ज़िंदगी
दिलों के टीस में दबी
दम तोड़ती ये चीत्कार
क्यों व्यर्थ अब यलगार!
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