सुबह का है नज़ारा, पीकू
देखो कितना प्यारा
वो बैग लटका कर
कैसे मुन्नी दौड़ लगाए
उधर घसीट कर पैरों को
मुन्ने की ईप्सा है कि
बस छूट जाए।
सेहत की आस में
देखो कोई द्रुत कदम बढ़ाए,
कोई सिर्फ कपड़ों की आड़ में
जैसे कपड़ों को ही टहलाए।
दिनचर्या की दौड़ भाग से दूर
कोई चिंतन में खो जाए,
खिलखिलाती धूप की आस में
देखो कबूतर, कुत्ते भी आए।
दुनिया का रंग पीकू
है देखो कितना अनोखा
तुम्हें देखना-सीखना
अभी है बहुत,
ये जो है तुमने देखा
बस है एक झलक, एक झरोखा।
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