धीमी आंच पर जी है ज़िन्दगी
कभी उबले नहीं
कभी बिफ़रे नहीं
संचय कर उष्ण को
बिखेरा नहीं व्यर्थ में।
जिरह जो हुई कहीं
राह बदल कर चल दिए
भूलकर सारी बातें
धधके नहीं व्यर्थ में।
झिझक जो मन में आया कभी
विचारों को मोड़ दे दिया
पलट कर कभी उधर गए नहीं
भटके नहीं व्यर्थ में।
कभी उबले नहीं
कभी बिफ़रे नहीं
संचय कर उष्ण को
बिखेरा नहीं व्यर्थ में।
जिरह जो हुई कहीं
राह बदल कर चल दिए
भूलकर सारी बातें
धधके नहीं व्यर्थ में।
झिझक जो मन में आया कभी
विचारों को मोड़ दे दिया
पलट कर कभी उधर गए नहीं
भटके नहीं व्यर्थ में।
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