Sunday, December 12, 2010

कसूर

ह्रदय विदारक दृश्य न था,
ग्लानी क्यों थी फिर?
गोद में वो बिलखता भी तो न था,
मुँह फेर लिया बस,
ज़िम्मेदारी मेरी क्यूँ हो?

चेहरा बनावटी था -
हाँ बनावटी ही तो था,
आंसू सूखे होते तो
कोई चिन्ह तो होता ही ।

हमारा ही बोझ होगा,
नज़रें झुकी ही रह गयी,
कोशिश हमारी क्यों रहती,
उनके कर्म हैं, दोष हम क्यों लें?

1 comment:

  1. And now when i know the theme and idea behind this .. It is sounding so much better..
    You tend to feel bad sometimes.. But it's ok.. As u said.. "Unke karm hain .. dosh hum kyun lein ?"

    Liked the way you chose the words to express those feelings.. Well written..

    You should be writing more happy poems :) .. With Humor.. Lately its all sad poems ..

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दिन

दिन   बीत रहे हैं गुज़र रहे हैं फिसल रहे हैं खिसक रहे हैं लुढ़क रहे हैं नहीं रुक रहे हैं। हम गिन रहे हैं जोड़ रहे हैं जोह रहे हैं खो रहे हैं...