ख़लिश
क्यों डरे है ज़िन्दगी में क्या होगा, कुछ न होगा तो तजुर्बा तो होगा।
Saturday, September 11, 2010
अप्रमेय
खुशबू है,
स्वाद है
कुछ चीज़ें, पैमाने से परे हैं ।
सोच है -
किसी ने नापा नहीं
तौला नहीं
मूल नहीं पर अस्तित्व है,
अगाध नहीं, असंख्य नहीं
बस पैमाने से परे हैं ।
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