Tuesday, July 27, 2010

दर्पण

स्वप्निल,
डूबे,
कहीं खोए हुए से ।

धुंधले,
संकीर्ण,
सुलझाते कोई उलझन ।

उल्लासित ,
झिलमिलाते,
जगे, खिले हुए ।

छुपाते,
सहमे हुए से
ढके हुए, खामोश ।

मन-दर्पण
आँखें ।

1 comment:

  1. Described very well .. Well written ..
    Love the hindi version , And love the new rainy look of the Blog .. It suits

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दिन

दिन   बीत रहे हैं गुज़र रहे हैं फिसल रहे हैं खिसक रहे हैं लुढ़क रहे हैं नहीं रुक रहे हैं। हम गिन रहे हैं जोड़ रहे हैं जोह रहे हैं खो रहे हैं...