Wednesday, December 09, 2009
शादी कब कर रहे हो?
कुछ दिनों तक तो हमने इस सवाल को टाला, लेकिन जब एक दिन में २ राहगीरों ने इस सवाल को दोहराया , (दूसरे ने पारिभाषिक रूप से तो सवाल नही किया, मगर कभी कभी निगाहें भी पता नही कितना कुछ कह जाती हैं - इसके लिए कभी दूसरा ब्लॉग) तो ऐसा लगा की ज़िन्दगी में कुछ अचूक सवाल होते हैं जिनका कोई अचूक जवाब नही होता । और जब आप यूँ तनहा वीकेंड में घर पर पडे रहते हैं, या कहीं कूप अंधियारे में भटक रहे होते हैं तो ऐसे ही सवाल आपके मन में खटकते हैं ।
एक वीकेंड हम भी ऐसी ही अवस्था में थे - तनहा , फुर्सत में, तस्सवुर-ए-जाना किए हुए । वैसे हमने अपनी ज़िन्दगी में बहुत रेयरली ही किसी चीज़ के लिए लोड लिया है। इसकी कई वजह दे तो सकता हूँ पर आपने अगर हमारी माशा अल्लाह डील देखी है तो आप ख़ुद समझ जायेंगे। मगर उस नवम्बर महीने के मनहूस वीकेंड ने हमारी डील को अनदेखा कर हमें लोड लेने पर मजबूर कर दिया। हुआ यूँ की हमारे तीन मित्रों ने शादी कर ली थी और वही किया था जिसके बारे में हमने पहले परिच्छेद में लिखा है। खुशी तो बहुत हुई हमें लेकिन उसके असली प्रभाव ने हमारे जेहन में धीरे धीरे रंग पकड़ा ।
पीयर प्रेशर का सही अर्थ, अगर सच कहें तो हमें इस दिन समझ आया । अब ऐसा हो गया है की हमारे मित्रों में पौने लोंगो ने तो शादी कर ली है। खुशी तो बहुत होती है की जिनके साथ निक्कर पहन कर भटका करते थे उन्हें अब उस स्वरुप में कोई और ही देखेगा :D
हाँ बस डर इस बात का है की कहीं उनका कॉल न आए और उनका पहला सवाल ये न हो - "शादी कब कर रहे हो?"
Tuesday, December 08, 2009
मेरा सिटी बैंक क्रेडिट कार्ड: जय हो !!!
सन २००९, इतिहास में ऐसे साल के नाम से जाना जाना चाहिए, जिसमे हमारे घूमने की योजनायें तो बहुधा बनी लेकिन कार्यान्वित एक भी नही हुई। अब हुआ यूँ की हमने अपने भाइयों और कुछ दोस्तों के साथ लदाख देखने की योजना बनाई थी । शुरुआती जोश कहिये या कुछ और हमने ताबड़ तोड़ तय्यारी कर ली। एक रे-बैन का नया चश्मा, कुछ नए कपड़े (गर्म कपड़े) और एक नया बैग। इससे हमारे क्रेडिट कार्ड का बिल थोड़ा सर से ऊपर निकल गया। आजकल के नौजवान कहाँ चादर की फिक्र करते हैं। अब जब पैर लंबे हो जायें तो चादर ही बदल लेते हैं, फ़िर जितना पैर पसारना है पसारें । और जब सिटी बैंक का प्लैटिनम कार्ड हो तो उधार की चादर अनंत से भी लम्बी लगती है ।
और हुआ वही जिसका अंदेशा भी नही था - हमारे हिन्दी सफर की योजना अंग्रेज़ी सफर बन गयी। किसी कारणवश हम लदाख न जा सके और अगले २ महीने तक हमने उस बिल का भुगतान किया। जी हाँ दुनिया की क्रेडिट क्राइसिस में जो भी थोड़ी बहुत राहत दिखी है वो हमसे ही है।
इस बीच हमारी कंपनी ने भी हमे आयरलैंड भेजने की योजना बनाई । हमसे कहा गया था की एक दिन की नोटिस पर सफर के लिए तैयार रहे। अब ऐसे नोटिस अगर बीवी दे तो आपके हाथ पैर बंध जाते हैं (ऐसा सुना है, क्यूंकि भगवन की कृपा से हम अभी भी कुंवारे हैं ) और आप भीगी बिल्ली बन मोहतरमा की आज्ञा का इंतज़ार करते हैं। लेकिन अब ऐसी नोटिस कंपनी की हो और वो भी विदेश जाने की तो कुछ बाहर जाने का जोश और कुछ तो शौपिंग करने का बहाना आपको अपने क्रेडिट कार्ड से दूर नही रख सकता । हमने फ़िर ताबड़ तोड़ खरीदारी की और एक क्या आधे दिन के नोटिस पर जाने के लिए तैयार हो गया। पर कहते हैं न की किस्मत में हो "@#$%" तो कैसे मिलेंगे पकौड़े। जी हाँ ये योजना भी हमें और हमारी कार्ड को धता बता कर हवा हो गयी ।
फ़िर एक योजना बनाई पांडिचेरी देखने की। इस बार हमने अपने दोस्त का क्रेडिट अकाउंट का इस्तेमाल किया। बस उधारी के पैसों में पूरा शहर देखा। लौटते वक्त जैसे हमारी उधार की ज़िन्दगी का भार ऊपर वाले को ज़रा हल्का लगा और उन्होंने हमारे वाहनको मटिया मेट कर दिया। बस एक दुर्घटना - अब छोटी कहें या बड़ी, ये यहाँ पर कहना उचित नही होगा - और हमारी क्रेडिट की दुनिया में १-२ सितारे और जुड़ गए।
अब जब इतना कुछ हो जाना था तो गोवा का प्लान क्यूँ पीछे रहे? नवम्बर का महिना आया नही की हमने बड़ा दिन गोवा में मनाने का प्लान बनाया। सारे दोस्त फ़िर से तैयार और हम तो उनसे २ कदम आगे ही। उड्डयन उद्योग भी हम जैसे बेवकूफों के लिए आँखें बिछाए बैठा रहता है। तो हम क्यूँ अपने को कम आंकने दें - झटके में रिटर्न टिकट बुक कर लिया और गोवा के मनमोहक बीच के सपने देखने लगा। लेकिन चूँकि सन २००९ में सफर बस ख्यालों में लिखा था इसलिए हमारा गोवा का प्लान भी बस वहीँ भष्म हो गया। और हुज़ूर जब योजना भष्म हो गयी तो साथ में कुछ चढ़ावा तो लगना ही था। जी हाँ हमारे क्रेडिट कार्ड का बिल एक बार फ़िर अमर जवान ज्योति में सुलगते हुए लौ की मानीन्द दहक उठा। आज आलम ये है की हम महीने की तनखाह को देखते हैं और कभी अपने क्रेडिट कार्ड के बिल को। और कसम है हमे उस कार्ड दिलाने वाले की जो कभी कार्ड को बंद करवाने का ख्याल जेहन में आया हो ।
चरित्र
कहीं छंदों का कहीं संगों का कहीं फूल बहार के खेलों का चट्टानों, झील समंदर का सुन्दर रंगीन उपवनों का ख़ुशबू बिखेरती सुगंध का, कभी रसीले पकवान...
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दूर दूर तक खेत दिखते हैं, ज़्यादा फ़रक भी नहीं है, कम से कम खेतों में। कभी हल्के रंग दिखते हैं और कहीं गहरे धानी। फ़सल गेहूँ सी लगती है पर क...
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“कुपुत्रो जायेत, क्वचिदपि कुमाता न भवति”, देवी दुर्गा क्षमायाचना स्तुति की ये पंक्तियाँ जैसे हमें भावार्थ सहित कंठस्थ है। और कैसे न हो जिस...