फ़िर से कहाँ बह चले ----
बहाव में विचार भी जैसे घिस गए ।
उन पुराने पन्नों में ---
वो मोड़ फ़िर दिखे,
जहाँ कभी हम टूट गए,
जहाँ मूल्य भी सब छूट गए ।
उस चमकदार रौशनी में
शायद हम ही भटक गए।
उन मोड़ पर क्या बदला ?
शायद हम या
शायद हालात बदल गए।
Friday, October 09, 2009
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चरित्र
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