Friday, September 19, 2008

विरोधाभास

भंवर है, उत्पात है
जलन है, विरह है
राख है ,धूल है
विकीर्ण है, वृहद् है
शोर है, विस्फोट है

सुन्दरता है, जोश है
सदाचार है, परोपकार है
खुशबू है, रंग है
प्रीत है, दया है
इच्छा है, सोच है
जज़्बा है, उमंग है
प्रकाश है और आशा है

शायद इसलिए ज़िन्दगी है

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दिन

दिन   बीत रहे हैं गुज़र रहे हैं फिसल रहे हैं खिसक रहे हैं लुढ़क रहे हैं नहीं रुक रहे हैं। हम गिन रहे हैं जोड़ रहे हैं जोह रहे हैं खो रहे हैं...