Wednesday, February 06, 2008

आज फिर...

आज फ़िर ज़िन्दगी ने दी पटखनी
आज फिर कंधो पर बोझ का एहसास हुआ;

आज फिर प्रयास में हाथ गंदे हुए
पर किसी उपलब्धि की कमी खली;

आज फिर सपनों की लड़ी बिखरी
आज फिर उन्हें संजोने का मन बनाया

आज फिर आसमान अपरिमित लगा
आज फिर डर ने साहस को खदेड़ दिया;

आज फिर एक शोर विचारों पर आच्छादित हुआ
आज फिर सुर ने धुन का साथ छोड़ा;

आज फिर उम्मीद का दीपक बुझता हुआ सा लगा
आज फिर तमस प्रकाश पर हावी हुआ।

ट्रेन सफर

दूर दूर तक खेत दिखते हैं, ज़्यादा फ़रक भी नहीं है, कम से कम खेतों में। कभी हल्के रंग दिखते हैं और कहीं गहरे धानी। फ़सल गेहूँ सी लगती है पर क...