छिटके थे तूने अपनी तूलिका से रंग,
मैं सराबोर ना हो सका;
रंग तो थे उसमे कई सारे,
पर कुछ भी मुझ पर जम ना सका।
पाए छीटों से तो मैने सारे रंग,
पर दर्शनीय मैं कहाँ बन सका।
कृति तो तूने खूब बनाई,
मैं जूठन सा अनछुआ क्यूँ रह गया?
मैं सराबोर ना हो सका;
रंग तो थे उसमे कई सारे,
पर कुछ भी मुझ पर जम ना सका।
पाए छीटों से तो मैने सारे रंग,
पर दर्शनीय मैं कहाँ बन सका।
कृति तो तूने खूब बनाई,
मैं जूठन सा अनछुआ क्यूँ रह गया?