Thursday, September 18, 2025

उसी चौराहे पर

 कोई सपनों को अपने जी रहा है

अकड़ कर खड़ा हवाओं का रुख़ मोड़ रहा है,

लगा हुआ है कोई दौड़ भाग में

खींच तान, जोड़ तोड़ की आस में।


उठे सभी एक ही जगह से, सतह से

छूटे घरबार सबके एक ही वजह से

समेटा जितना, उसी से बढ़ना है

जमा किया जो उसी से क़िस्मत गढ़ना है।


अक्खड़, उजड्ड, साहसी थे कुछ 

धार तेज़ कर नए मैदानों में निकल गए 

बेबाक़, बेफिक्र थे कुछ; नए हथियारों से होकर लैस

नियति नई लिख, वायरल हो गए

और हम -

ठिठके एक कृति के आस में

बन कर मील का पत्थर 

थम गए, जम गए उसी चौराहे पर!

उसी चौराहे पर

  कोई सपनों को अपने जी रहा है अकड़ कर खड़ा हवाओं का रुख़ मोड़ रहा है, लगा हुआ है कोई दौड़ भाग में खींच तान, जोड़ तोड़ की आस में। उठे सभी एक ...