कम्बख़्त इन्सानियत की जान लेने आया है
कहते हैं कि साथ में अगर बोल हँस लो
या हाथों में हाथ जो कस लो,
गले मिल लिया तो हो गई बड़ी गुनाह
मिल जाती फिर उसे एक नई पनाह।
वो ये भी कहते हैं
कि दुश्मन तो अनदेखा है
पर किसी जालसाज़ ने
ख़तरनाक दाँव फेंका है,
जो न हो तैयारी
तो गिरती है गाज भारी।
दुबके डरे सब बैठे हैं,
आलस से अकड़े ऐंठे हैं।
मूड भयंकर ऑफ है
जहाँ नहीं मातम वहाँ ख़ौफ़ है।
तो चलो अब कुछ ऐसा करते हैं
दुश्मन पर फबती कसते हैं,
इन्सानियत को नई अमृत देते हैं।
वर्चुअल चौपाल बनाते हैं
अड्डेबाज़ी को रुप रंग नए देते हैं
हँसी ठीठोली खूब करते हैं।
गले या हाथ नहीं
चलो दिलों को टच करते हैं।
मानव स्पर्श की भले हो कमी
दुश्मन शर्तिया खाएगा चकमा,
फाँकेगा धूल, चाटेगा ज़मीन ।
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