एक पुरानी दोपहर का मंज़र आँखों में ठहर गया
कल यादों की बोझ में वह सहर गया|
कल यादों की बोझ में वह सहर गया|
वो मसूर के पकने की खुशबू,
खिलखिलाता बचपन,
सुदूर विविध भारती पर बजते
गानों की तान,
छत के छप्पर से छनती धूप
जाने कितने पलों का वो मंज़र आखों में ठहर गया
कल यादों की बोझ में वह सहर गया|
खिलखिलाता बचपन,
सुदूर विविध भारती पर बजते
गानों की तान,
छत के छप्पर से छनती धूप
जाने कितने पलों का वो मंज़र आखों में ठहर गया
कल यादों की बोझ में वह सहर गया|
खिलखिलाने पर पाबंदी वाली झिड़क,
धूप में नहीं खेलने की हिदायत
बेबात शोर पर एकसुरी शशशश,
और फिर से वो बेकही हंसी
हैफ कि वो मंज़र ही क्यों नहीं ठहर गया!
कल यादों की बोझ में वह सहर गया|
धूप में नहीं खेलने की हिदायत
बेबात शोर पर एकसुरी शशशश,
और फिर से वो बेकही हंसी
हैफ कि वो मंज़र ही क्यों नहीं ठहर गया!
कल यादों की बोझ में वह सहर गया|