Friday, September 18, 2009

दुनिया

शूल बिछाया,
जाल फैलाया,
फुसलाया-धमकाया,
लालच भी रखा साथ में,
हैफ की ना आया वो हाथ में!!

खेले सारे दांव पे दांव,
कई इक्के,
कितने गुलाम;
आँखें बिछाए,
घुटने टिकाये
गिरा रहा बस सामने
हैफ की न आया वो हाथ में!!

व्यग्र जब न रह सके,
मूल अर्थ समझ,
पृथक पड़े;
दक्ष बन -
भीगते ज्ञान की बरसात में,
हैफ की अब क्यूँ आया हाथ में!!!

दिन

दिन   बीत रहे हैं गुज़र रहे हैं फिसल रहे हैं खिसक रहे हैं लुढ़क रहे हैं नहीं रुक रहे हैं। हम गिन रहे हैं जोड़ रहे हैं जोह रहे हैं खो रहे हैं...